सोमवार, 5 दिसंबर 2022

लोंजाइनस (उदात्त/उदात्ता)

 

लोंजाइनस (काव्य में उदात्त तत्व)

डॉ. अवधेश पाण्डेय

अरस्तू के बाद लोंजाइनस यूनान के महान काव्यशास्त्री माने जाते हैं। इनकी एक मात्र रचना ‘पेरिइप्सुस’ है। यह 44 अध्याय, 76 पृष्ठ की  रचना है। शताब्दियों की उपेक्षा और विस्मृति के बाद ‘पेरिइप्सुस’ का प्रकाशन रोवरतेल्लो ने कराया। 1652 में जॉन हॉल ने इसका अंग्रेजी अनुवाद “ऑफ द हाइट ऑफ इलेक्वेन्स’ नाम से किया। उदात्तता के सिद्धांत को “On the Sublime”  भी कहते हैं।

‘पेरिइप्सुस’ मूलतः भाषण ग्रंथ है। लोंजाइनस ने अपने मित्र “पोस्तुमिउस” को पत्र लिखकर भाषण कला की बारीकियों से परिचित कराया था। भाषण ग्रंथ होते हुए भी यह काव्यशास्त्रियों के बीच पर्याप्त सम्मानित है। कारण यह है कि भाषण-कला के भावों को उद्दीप्त और तर्क पुष्ट करके गरिमा और सौन्दर्य का समावेश किया जाता है।

उदात्ता का गुण ऐसा है कि वह चिरौरी नहीं करता बल्कि चील के झपट्टे की तरह आपको उड़ाकर ले जाता है। यह बिजली की कड़क की तरह पूर्व सूचना नहीं देता। उदात्त साहित्य धीरे-धीरे आपको अपने आगोश में नहीं लेता। उदात्त अभिव्यक्ति की उच्चता से संबंधित होने के कारण शैली का गुण है। औदात्त श्रोता को अभिभूत कर लेता है, इसलिए वह तर्क का विषय न होकर भावोत्पादक गुण है। लोंजाइनस औदात्त की मूल प्रेरणा शक्ति को मानता है। नियमों के ज्ञान और अभ्यास के द्वारा प्रतिभा और ज्ञान को उदात्त बनाया जाता है। लोंजाइनस मानता है कि महान प्रतिभाशाली उच्च विद्वान और चरित्रवान व्यक्ति की ‘उदात्त’ रचनाएं दे सकता है। वह कहता है – “औदात्त आत्मा की महानता का प्रतिबिंब है। सच्चा औदात्त केवल उन्हीं में प्राप्य है, जिनकी चेतना उदात्त एवं विकासोन्मुख है। जिनका जीवन तुच्छ एवं संकीर्ण विचारों के अनुसरण में व्यतीत होता है, वे कभी मानवता के लिए कोई स्थायी महत्व की रचना प्रस्तुत करने में सफल नहीं होते।“ लोंजाइनस के पहले किसी आलोचक ने साहित्य का उसके रचयिता के व्यक्तित्व से इतना घनिष्ठ संबंध स्थापित नहीं किया था।

लोंजाइनस कहते हैं कि पांच जीजें किसी काव्य को महान बनाती हैं।

1.       उदात्त विचार – महान व्यक्तियों की वाणी से ही उदात्त विचार ध्वनित होते हैं। होमर की रचनाओं में ‘औदात्त’ इसलिए आ सका क्योंकि स्वयं उसका व्यक्तित्व महान था।

2.       उदात्त भावों का चित्रण

3.       अलंकार नियोजन

4.       उत्कृष्ट भाषा

5.       गरिमामय रचना विधान

ग्रीक साहित्य में अरस्तू ने कला को अनुकृति मानते हुए कवि के निजी व्यक्तित्व की उपेक्षा कर दी थी किंतु लोंजाइनस ने कवि के व्यक्तित्व को कविता की भव्यता से सम्बद्ध करके काव्य चिंतन की दिशा ही बदल दी। भाव आडम्बर, शब्द आडम्बर, अतिश्योक्ति, लय की अस्त व्यस्तता, कथन की अतिसंक्षिप्तता तथा क्षुद्र और कुत्सित भाषा का प्रयोग उदात्त विरोधी हैं।

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