शनिवार, 9 मई 2020

guru nanak


भाषा, साहित्य और संस्कृति (LLC)
बी.ए. द्वितीय वर्ष के छात्रों के लिए नोट्स

गुरुनानक
गुरुनानक का जन्म 15 अप्रैल 1469 ई. को हुआ था। इनका जन्म रावी नदी के तट पर तलवण्डी नामक स्थान पर हुआ था। तलवण्डी अभी पाकिस्तान के लाहौर जिले में स्थित है। गुरुनानक के बाद से इस जगह को ननकाना साहिब कहा जाने लगा। आज इनका जन्मदिन प्रकाश उत्सव के रूप में कार्तिक पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसमें भारत के लाखों सिख श्रद्धालुओं का जत्था ननकाना साहिब जाकर अरदास करता है।
इनके पिता का नाम कालू राम मेहता और माता का नाम तृप्ता था। इनके पिता जाति के खत्री थे और गांव में कृषि और पटवारी का काम करते थे। 16 वर्ष की आयु में नानक का विवाह हो गया। इनकी पत्नी का नाम सुलक्खनी देवी था। इनके दो पुत्र हुए जिनका नाम श्रीचंद और लक्ष्मीचंद था।
स्कूल में पढाई-लिखाई में इनका मन नहीं लगता था। यह अधिकतर सांसारिक और आध्यात्मिक विषयों पर चिंतन और मनन करते रहते थे। इनके पिता जी इन्हें कृषि और व्यापार में लगाना चाहते थे लेकिन वहां भी इनका मन नहीं लगा। पिताजी ने इन्हें एक बार व्यापार करने के लिए कुछ पैसे दिए और कहा कि खरा सौदा करके आना। इन्होंने इन रुपयों से भूखे साधुओं को भोजन करवा दिया और लौटकर इन्होंने अपने पिताश्री को बताया कि वे खरा सौदा करके आए हैं।
सिख धर्म में 10 गुरुओं की परम्परा है। गुरुनानक इस परम्परा के पहले गुरु हैं। पंजाबी भाषा में सिख का मतलब शिष्य होता है। जो दस गुरूओं और उनकी शिक्षाओं में यकीन करते हैं, वे सिख कहलाए। सिख धर्म के 10 गुरु निम्नलिखित हैं -
1.      गुरुनानक
2.      गुरु अंगद
3.      गुरु अमरदास
4.      गुरु रामदास
5.      गुरु अर्जुन देव
6.      गुरु हरगोविंद
7.      गुरु हरराय
8.      गुरु हरकिशन
9.      गुरु तेग बहादुर
10.  गुरु गोविंद सिंह
गुरुनानक ने जात-पांत के भेदभाव को खत्म करने और सभी को समान दृष्टि से देखने के लिए लंगर’ प्रथा की शुरुआत की। ‘लंगर’ में सभी जातियों के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं। इसे गुरु का लंगर कहा गया। आज भी गुरुद्वारों में नानक की चलाई हुई लंगर व्यवस्था चल रही है। गुरुनानक की शिक्षा है कि परमात्मा एक है। वह सर्वशक्तिमान है। मूर्ति पूजा निरर्थक है। नाम-स्मरण सर्वोपरि है। नाम गुरु से ही प्राप्त होता है। गुरुनानक की वाणी 19 रागों में गुरुवाणी में शामिल है। 10 गुरुओं सहित कुछ अन्य संतों की वाणियों के संकलन को गुरुवाणी या आदिग्रंथ कहा जाता है। जपुजी, असादीवार गुरुनानक की रचनाएं हैं।



काहे रे बन खोजन जाई

काहे रे! बन खोजन जाई!
सर्व-निवासी सदा अलेपा, तोही संग सगाई।।
पुष्प मध्य ज्यों बास बसत है, मुकुर मांहि जस छाई।
तैसे ही हरि बसै निरंतर, घट ही खोजो भाई।।
बाहर भीतर हरि बसै निरंतर, घट ही खोजो भाई।
बाहर भीतर एकै जानौ, यह गुरु ज्ञान बताई।
जन नानक बिन आपा चीन्हे, मिटै न भ्रम की काई।।


अर्थ - गुरुनानक कहते हैं कि ईश्वर को खोजने जंगलों में क्यों जाते हो। यह ईश्वर संसार के कण-कण में है। उसका निवास हर जगह है। वह आपके भीतर भी निवास करता है। इसलिए ऐसे ईश्वर को जंगलों में खोजना व्यर्थ है। यह ईश्वर वैसे ही प्रकृति की हर चीजों में बसा हुआ है जैसे- फूलों के मध्य सुगंध और दर्पण में परछाई बसी होती है। इसी तरह से ईश्वर हमारे शरीर के भीतर ही बसा हुआ है इसलिए भीतर की आंखें खोलो और अपने अंदर उस ईश्वर की तलाश करो। गुरु लोग कह गए हैं कि जिस ईश्वर की आप बाहर तलाश करते हो, वह हमारे भीतर ही बसा हुआ है। इसलिए बाहर-भीतर एक जैसा ही है। बाहर भटकने की जरूरत नहीं है। गुरुनानक कहते हैं कि जब तक आप अपने आपको नहीं पहचानोगे, आपके मन से भ्रम दूर नहीं होगा। इसलिए सबसे पहले अपने आपको पहचानने की कोशिश करो। इसके बाद ही ईश्वर से आप साक्षात्कार कर सकते हैं।

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