नरसी मेहता
(1470-1536 ई.)
डॉ. अवधेश पान्डेय
नरसी मेहता गुजरात के भक्त थे। इनका जन्म 1470 ई. में
गुजरात राज्य के जूनागढ़ रियासत के ‘तलाजा’ नामक
गांव में हुआ था। नागर ब्राह्मण परिवार में इनका जन्म हुआ था। इनकी माता का नाम दयाकुंअर
और पिता का नाम कृष्णदास था। नरसी मेहता जब छोटे थे तभी इनके माता-पिता का
देहान्त हो गया था। नरसी का मन पढ़ाई-लिखाई में नहीं लगता था जिससे यह ज्यादा
पढ़-लिख नहीं पाए। इनका विवाह ‘माणिकबाई’ से हुआ जिससे कुंअरबाई तथा शामलदास
नामक दो संतानें हुई। इनका मन घर के कामकाज में बिल्कुल नहीं लगता था। इनके भाई ने
सोचा था कि विवाह हो जाने के बाद इनका मन घर के कामकाज में लगने लगेगा लेकिन विवाह
के बाद भी इनके आचरण में कोई फर्क नहीं आया। इनका ज्यादातर समय साधुओं की संगत में
बीतता था जिसके कारण इनके भईया और भाभी हमेशा ताना देते रहते थे। इन तानों से तंग
आकर नरसी ने घर छोड़ दिया।
वैष्णव होने के पहले यह शैव थे। शिव की कृपा से
ही इन्हें भगवान कृष्ण के दर्शन हुए। इसके बाद यह भगवान कृष्ण और राधा रानी के
उपासक बन गए। इनके जीवनकाल में ही इनकी पत्नी, पुत्र और पुत्री की मौत हो गई। इन
सबके देहावसान के बाद नरसी मेहता के मुंह से निकला -
“भलुं थयु भागी जंजाल,
सुखे भुजुशुं श्री गोपाल’
(अच्छा हुआ यह सारे जंजाल छूट गए, अब मैं आराम
से भगवान का भजन करूंगा)
आज भी गुजराती में यह कहावत बहुत प्रसिद्ध है।
भक्त हर परिस्थिति में भगवान को याद करना चाहता है इसलिए वह
किसी भी स्थिति को एक अवसर के रूप में देखता है। संत कबीर के बारे में प्रसिद्ध है
-
भला हुआ मोरी गगरी फूटी
मैं पनिया भरन से छूटी रे
मोरे सर से टली बला…
भला हुआ मोरी माला टूटी
मैं राम जपन से छूटी रे
मोरे सर से टली बला…
मैं पनिया भरन से छूटी रे
मोरे सर से टली बला…
भला हुआ मोरी माला टूटी
मैं राम जपन से छूटी रे
मोरे सर से टली बला…
इसी तरह से नरसी मेहता ने अपनी पत्नी और बच्चों की मृत्यु पर कहा था कि
अच्छा हुआ कि यह नहीं रहे। अब मैं निश्चिंत होकर भगवान का भजन करूंगा।
नरसी मेहता की रचनाएं गुजराती
के साथ-साथ हिंदी में भी हैं। कृष्ण लीला और रास लीला उनकी रचनाओं के मुख्य विषय
हैं। उनकी रचनाओं में हार-माला,
चातुरी षोडषी, चातुरी छतीसी, सामलदास नो विवाह, दान लीला, गोविंदगमन और
सुरत
संग्राम हैं।
वैष्णव
नरसी मेहता
वैष्णव थे। वैष्णव अपनी भक्ति, पवित्र आचरण और अहिंसा के लिए
जाने जाते हैं। विष्णु और उनके अवतारों में विश्वास रखने वाले को वैष्णव कहा जाता
है। विष्णु के दस अवतार माने गए हैं। राम और कृष्ण विष्णु के सबसे लोकप्रिय अवतार
हैं। वैष्णव धर्म या सम्प्रदाय का प्राचीन नाम भागवत धर्म था।
चमत्कारिक घटनाएं
नरसी मेहता के
जीवन से कई कथाएं जुड़ी हुई हैं। एक दिन इनकी भाभी ने ताना मारते हुए कहा कि हमेशा
भक्ति करते रहते हो, जाकर भगवान से मिल क्यों नहीं आते। इस ताने को नरसी ने बहुत
गम्भीरता से लिया और उसी समय वह घर छोड़कर चल दिए। वह जूनागढ़ से कुछ दूर निकल गए
और एक मंदिर में बैठकर भगवान शंकर की पूजा करने लगे। शंकर जी प्रकट हुए और इनको
वृन्दावन ले जाकर रास लीला का दर्शन कराए। रास लीला देखते हुए वे इतने मग्न हो गए
कि मशाल से अपना हाथ जला बैठे। लेकिन भगवान की लीला से इनका हाथ पहले जैसा हो गया।
इसके बाद ये कृष्ण भक्त बन गए।
कहा जाता है कि
भगवान ने कई अवसरों पर प्रकट होकर नरसी की मदद की थी। इनकी पुत्री के विवाह की
व्यवस्था स्वयं भगवान ने की थी। एक बार ये पिताजी के श्राद्ध के लिए घी लेने गए
लेकिन भगवान के कीर्तन में खो गए। इन्हें समय का होश ही न रहा। उधर मेहती इनके घी
लाने का इंतजार करती रही लेकिन नियत समय पर भगवान कृष्ण नरसी का रूप बनाकर घी और
अन्य साजो-सामान के साथ इनके घर पहुंचे और श्राद्ध की पूरी व्यवस्था संभाल ली। बाद
में असली नरसी जब घी लेकर पहुंचे, तब उनको पूरी कथा समझ में आयी।
एक बार जूनागढ़
के राजा ने कहा कि यदि तुम सच्चे भक्त हो तो ऐसी पूजा करो ताकि भगवान की मूर्ति का
हार इनके गले में आ जाए। नरसी जी ने इसको स्वीकार किया और ऐसी पूजा शुरू की जिससे
भगवान की मूर्ति का हार इनके गले में आ गया। इस तरह की कई चमत्कारिक कहानियां नरसी
मेहता से जुड़ी हुई हैं।
वे आज भी हमारे हृदय में प्रेम और भक्ति का
संचार कर रहे हैं। नरसी मेहता गुजराती भक्ति साहित्य के शिरोमणि हैं।
डाक टिकट
30 मई 1967 को भारत सरकार ने नरसी मेहता पर 15
पैसे का डाक टिकट जारी किया। नरसी मेहता युगों-युगों तक याद किए जाएंगे।
वैष्णव जन तो तेने कहिये
वैष्णव जन
तो तेने कहिये, जे पीड पराई जाणे रे।
पर दुखे उपकार
करे तो ये, मन अभिमान न आणे रे।।
सकल लोकमां
सहुने बंदे, निंदा न करे केनी रे।
वाच काछ मन
निश्चल राखे, धन-धन जननी लेनी रे।।
समदृष्टि ने
तृष्णा त्यागी, पर स्त्री जेने मात रे।
जिह्वा कभी
असत्य न बोले, परधन ना झाले हाथ रे।।
मोह माया
व्यापे नहिं जेने, दृढ़ वैराग्य जेना मनमां रे।
राम नाम
शुंता की लागी, सकल तीरथ तेना तनमां रे।।
वण लोभी ने
कपट रहित द्दे, काम क्रोध निवार्या रे।
भणे नरसैंयो
तेनुं दरसन करतां, कुल एकोतर तार्या रे।।
English Translation
Call
those people Vaishnavas whoFeel the pain of others,Help those who are in misery,But never let self-conceit enter their
mind.They respect the entire world,Do not disparage anyone,Keep their words, actions and
thoughts pure,The mother of such a soul is blessed.They see all equally, renounce craving,Respect other women as their own mother,Their tongue never utters false words,Their hands never touch the wealth of
others.They do not succumb to worldly
attachments,They are firmly detached from the
mundane,They are enticed by the name of God
(Rama),All places of pilgrimage
are embodied in them.They have forsaken greed and deceit,They stay afar from lust and
anger,Narsi says: I'd be grateful to meet such
a soul,Whose virtue liberates their entire
lineage.
परिचय - अक्सर लोग यह कहते मिल जाते हैं कि वे सच्चे
हिन्दू हैं। कोई कहता है कि वह सच्चा मुसलमान है लेकिन यदि ध्यान दिया जाए तो
सच्चा बनना ही बहुत मुश्किल है। हिन्दू-मुसलमान तो आदमी बाद में हो जाएगा लेकिन
सच्चा बनना संसार का सबसे कठिन काम है। नरसी मेहता उसी सच्चेपन की बात कर रहे हैं
कि अधिकांश लोग खुद को वैष्णव कहते हैं। राम और कृष्ण की पूजा करने वाला खुद को
बताते हैं लेकिन पाखंड से भरे रहते हैं। सच्चा वैष्णव या भक्त कैसा होता है? उसके
लक्षण नरसी जी ने इन पदों में बताया है।
गांधीजी का प्रिय भजन
नरसी मेहता का यह भजन गांधीजी को बहुत
प्रिय था। गांधी जी इसे अक्सर गाते-गुनगुनाते रहते थे। गांधीजी के प्रार्थना सभा
की शुरूआत इसी भजन से होती थी। नरसी मेहता इसमें सच्चे वैष्णव के गुण बता रहे हैं।
वैष्णव जन
तो तेने कहिये, जे पीड पराई जाणे रे।
अर्थ - वैष्णव वही है जो
दूसरे के दुखों को समझता है। सच्चा वैष्णव वही है जो दूसरे की पीड़ा को समझता है
और उससे सहानुभूति रखता है। जो दूसरे के कष्ट को देखकर पीड़ा का अनुभव करे, वही
सच्चा वैष्णव है।
शब्दार्थ -
जन - भक्त
तेने - उसको
पीड - पीड़ा, दुख, कष्ट
जाणे - जानना, समझना, महसूस करना
पर दुखे उपकार करे तो ये, मन अभिमान न आणे रे।।
अर्थ - सच्चा वैष्णव वही है जो दूसरे के दुखों को दूर
करे। कष्ट में पड़े लोगों की मदद करे लेकिन मदद करने के बाद अपने मन में घमंड न
आने दे। हमारी संस्कृति चुपचाप लोगों की मदद करने की रही है। कहा भी गया है कि
‘नेकी कर दरिया में डाल’। यदि हम किसी की मदद करके उसका एहसान जता देते हैं तो उससे
मिलने वाला पुण्य खत्म हो जाता है। आज जब लोग किसी को दो केले भी दान करते हैं तो
उसका गुणगान करते नहीं थकते। उस दान की फोटो से पूरे सोशल मीडिया को भर देते हैं।
ऐसे समय में नरसी मेहता का यह पद हमारा प्रेरणास्रोत बन सकता है कि लोगों की मदद
भी करो और मन में इस बात का घमंड भी न आने दो। जो बिना घमंड के लोगों की मदद करे,
उसे ही नरसी मेहता सच्चा वैष्णव मानते हैं।
शब्दार्थ -
पर - दूसरे लोगों, अन्य लोगों
उपकार - मदद करना, कष्टों से उबारना
अभिमान - घमंड
आणे - आना
सकल लोकमां
सहुने बंदे, निंदा न करे केनी रे।
अर्थ- जो संसार के सभी लोगों का सम्मान करे। जो सभी
प्राणियों का आदर करे और किसी की भी निंदा या बुराई न करे; वही सच्चा वैष्णव है।
शब्दार्थ -
सकल - सम्पूर्ण, पूरे
लोकमां - संसार में, विश्व में
सहुने - सभी का
बंदे - सम्मान, आदर
केनी - किसी का
वाच काछ मन
निश्चल राखे, धन-धन जननी लेनी रे।।
अर्थ - जो वाणी और कर्म से मन को पवित्र रखे। वाणी और
कर्म से किसी को दुख न दे। जो न तो किसी को बुरा बोले और न ही अपने कामों से किसी
को दुख पहुंचाए वही सच्चा वैष्णव है और ऐसे व्यक्ति को जन्म देने वाली माता को नमन
है। धन्य है ऐसी माता जो ऐसे पुत्र को जन्म देती है।
शब्दार्थ -
वाच - वाणी
काछ- कर्म
निश्छल- निष्कपट, सरल, शुद्ध, पवित्र
समदृष्टि ने
तृष्णा त्यागी, पर स्त्री जेने मात रे।
अर्थ - जो सभी लोभ-लालच से मुक्त हो और सबको समान
दृष्टि से देखे। संसार के सभी लोग जिसकी नजर में बराबर हों जो छोटे-बड़े का भेद न
करे। जो दूसरी स्त्री को माता समझे और उसका वैसे ही सम्मान करे जैसे वह अपनी मां
का सम्मान करता है; वही सच्चा वैष्णव है।
शब्दार्थ -
समदृष्टि - समान दृष्टि से, सबको बराबरी से देखना, किसी को
छोटा-बड़ा न समझना
तृष्णा - लालच (शास्त्रों में तीन तरह की तृष्णा बताई गई
है - धन का लालच, पुत्र का लालच, सम्मान का लालच)
पर - दूसरी
जेने - उसको, जिसको
मात - माता, मां
जिह्वा कभी
असत्य न बोले, परधन ना झाले हाथ रे।।
अर्थ - जो कभी भी झूठ न बोले। जिसकी जीभ से कोई असत्य
बात न निकले। जो दूसरों के धन को पाने की इच्छा न करे। जो दूसरों के धन पर नजर न
गडाए; वही सच्चा वैष्णव है।
शब्दार्थ -
जिह्वा - जीभ
असत्य - झूठ
परधन - दूसरों का धन, दूसरों की सम्पत्ति
झाले - नज़र रखना, लालच करना
मोह माया
व्यापे नहिं जेने, दृढ़ वैराग्य जेना मनमां रे।
अर्थ - जो मोह-माया से दूर हो जिसको मोह माया छू तक न
जाए। जिसके मन में दृढ़ वैराग्य हो। जो किसी लोभ-लालच से दूर रहे। जो सांसारिक
चीजों से लगाव न रखे; वही सच्चा वैष्णव है।
शब्दार्थ -
वैराग्य - राग का अर्थ होता है लगाव, मोह। वैराग्य का अर्थ
है विरक्ति यानि उन कर्मों से दूर रहना या उसका लालच न करना जिसमें सामान्य लोग
लगे रहते हैं।
राम नाम
शुंता की लागी, सकल तीरथ तेना तनमां रे।।
अर्थ - जो हर समय राम नाम का जाप करे। हर समय राम का
नाम ले। सारे तीर्थ उसके शरीर में विद्यमान होते हैं। कहने का अर्थ है कि राम नाम
जपने वाला इतना पवित्र हो जाता है कि उसका शरीर ही तीर्थ स्थलों की तरह पवित्र हो
जाता है। उसे किसी तीर्थ यात्रा पर जाने की जरूरत नहीं है। उसका शरीर खुद तीर्थ की
तरह पवित्र है।
वण लोभी ने
कपट रहित द्दे, काम क्रोध निवार्या रे।
अर्थ - जो लोभ-लालच, कपट, काम और क्रोध से दूर हो।
जिसने इन सब बुराइयों पर जीत हासिल कर ली हो।
भणे नरसैंयो
तेनुं दरसन करतां, कुल एकोतर तार्या रे।।
अर्थ - नरसी मेहता कहते हैं कि ऐसे वैष्णव के दर्शन से
परिवार की इकहत्तर पीढियां तर जाती हैं। ऐसे वैष्णव धन्य हैं। वे अपने साथ अपने
कुल का भी उद्धार कर देते हैं।
पदार्या मारे कंकुरा पागले
पदार्या मारे कंकुरा पागले।
डगमग करता मोहन जी पदार्या पग
भरता डगले।।
लटपटी पाग लीलाम्बर सोहे,
पीताम्बर सोहे।
भाल तिलक झलमलता मोती, देखत मन
हरले।।
साकरडी आंगन बीच वूठी, दिग वूठा
ढीगले।
दूधां मेह वूठा नरसी घर, आंगनिये
सगले।।
अर्थ - कुमकुम लगे हुए पैर वाले बालक कृष्ण मेरी कुटिया
में पधारो। जब रास्ते में डगमगाते हुए बाल कृष्ण हमारी कुटिया की तरफ बढ़ेंगे तो
उस समय का दृश्य मन को मोह लेगा। उनकी अस्त-व्यस्त पगड़ी प्रभु की लीला की तरह
सुंदर लग रही है। ऊपर से पीला वस्त्र उनके शरीर की शोभा को और बढ़ा दे रहा है। उनके
माथे का तिलक मोती की तरह झिलमिला रहा है जिसको देखते ही मन प्रसन्न हो जा रहा है।
भगवान के आने से ऐसा लग रहा है कि आंगन में बरसात हो रही है और चारों दिशाओं से
बारिस हो रही है। ऐसा लग रहा है कि दूध के बादल नरसी के घर में बारिश कर रहे हैं
जिससे सारा आंगन तर हो गया है, भीग गया है।
शब्दार्थ
-
पदार्या
- पधारो
मारे
- मेरे
कंकुरा
-
कुमकुम (कुमकुम हल्दी की तरह होती है जिसे लोग शरीर में लगाते हैं।
कुमकुम लाल रंग का होता है इसलिए कई जगह इससे होली भी खेली जाती है। कुमकुम की
खेती होती है और कई जगह के किसान इसे उपजाते हैं।)
पागले
- पैर वाले
पग - पैर
लटपटी
- ढीला-ढाला, अव्यवस्थित, बेढंगा
पाग - पगड़ी
लीलाम्बर
- लीला रूपी वस्त्र
पीताम्बर
- पीला वस्त्र
ढिग - समीप में, पास में
वठी - बरसना
सगले
- सभी, सारा








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