गुरुवार, 5 जून 2025

अंधेर नगरी: भारतेन्दु हरिश्चन्द्र

 

अंधेर नगरी: भारतेन्दु हरिश्चन्द्र

डॉ. अवधेश कुमार पाण्डेय

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने यह नाटक एक रात में लिखा था। बनारस में हिंदी भाषी और कुछ बंगालियों की संस्था नेशनल थियेटर के लिए यह नाटक भारतेन्दु ने सन् 1881 में लिखा था। यह जिस दिन लिखा गया; उसी दिन यह काशी के दशाश्वमेध घाट पर अभिनीत भी हुआ था। यदि हिंदी रंगमंच के पिछले एक सौ वर्षों के इतिहास को उठाकर देखा जाए तो 'अंधेर नगरी' सर्वाधिक खेले गए नाटक के रूप में प्रमाणित होगा - विशेष रूप से स्वतंत्रता के पचास वर्षों में तो इसके इतने प्रदर्शन हो चुके हैं जिनका विवरण एकत्रित करना कठिन कार्य है। डॉ. सत्यव्रत सिन्हा और ब. व. कारन्त जैसे रंगनिर्देशक ‘अंधेर नगरी’ से जुड़े रहे हैं। ‘अंधेर नगरी’ किसी भी काल के लिए उतनी ही आधुनिक समकालीन और सार्थक रहेगी जितनी कि अपने समय में रही होगी। यही कारण है कि यदि उस समय इस प्रहसन को अंग्रेजी शासन-व्यवस्था के चित्रण के रूप में देखा गया तो आज की समाजिक एवं राजनीतिक स्थितियों में इसकी प्रासांगिकता और भी ज्यादा बढ़ गई है और आगे भी बढ़ती जाएगी।

इस नाटक में छह अंक हैं लेकिन वे अपने आकार और कलेवर में इतने छोटे-छोटे हैं कि उन्हें अंक न कहकर दृश्य कहना ज्यादा समीचीन होगा। नाटक का कथ्य एक लोकधर्मी प्रस्तुति शैली की मांग करता है। महंत और उसके दो चेले - नारायणदास और गोबरधनदास, कबाबवाला, घासीराम, चनेवाला, नारंगीवाला, हलवाई, कुजड़िन, मुगल, पाचकवाला, मछलीवाली, जातवाला (ब्राह्मण), बनिया, सेवक, राजा, मंत्री, फरियादी, कल्लू, कारीगर, चूने वाला, भिश्ती, कसाई, गड़रिया, कोतवाल, प्यादे, सिपाही - देश और समाज के इतने व्यवसायों और रंगों का प्रतिनिधित्व और किस नाटक में मिलेगा? नाट्य साहित्य में जीवन की इस बहुरंगी झांकी की दृष्टि से या तो शूद्रक के 'मृच्छकटिकम' की याद आती है या फिर आज के नाटक हबीब तनवीर के 'आगरा बाजार' को रेखांकित किया जा सकता है।

‘अंधेर नगरी’ एक प्रहसन है। इसमें भारत में अंग्रेजी शासन व्यवस्था और न्याय संबंधी अनेक विसंगतियों को बहुत व्यंगात्मक ढंग से उद्घाटित किया गया है। चूरन बेचने वाले के लटके में व्यक्त पंक्तियां देखिए -

‘चूरन साहिब लोग जो खाता,

सारा हिंद हजम कर जाता।

चूरन पुलिस वाले खाते,

सब कानून हजम कर जाते।'

यह प्रहसन मनोरंजन के माध्यम से सामान्य जनता में राष्ट्रीय भावना का प्रचार करता है। अन्यायी मूर्ख राजा किसी के अपराध का दंड किसी को देता है तो अंत में उसी को टिकठी पर चढ़‌ना पड़‌ता है।

 

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